Physics in Ancient India
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कौटिल्य अर्थशास्त्र के अनुकूल
प्राचीन चीन देशीय तुला (विविध-१०)
राहुल सांकृत्यायन कक्ष, पटना संग्रहालय, भारत

भूमिका (Intruduction) :
वस्तु (Matter) की मात्रा पार्थिवमान (Mass) कहलाती है। द्वितीय एवं तृतीय परिच्छेद में भौतिक राशियों के चर्चा के प्रसङ्ग में हमने, वस्तु की तीन अवस्थाओं ठोस, द्रव और गैस को समझाया है। इन अवस्थाओं का परस्पर अन्तर इनके अणुओं के मध्य की दूरी पर निर्भर करता है। यद्यपि उपर्युक्त तीनों अवस्थाएँ 'नैमित्तिक' (temporal) हैं, तथापि इन तीनों अवस्थाओं का स्वतन्त्र अध्ययन संभव है। इस अध्ययन का एक सैद्धान्तिक महत्व भी है, यह उन भौतिक स्थितियों का अन्वेषण करता है, जिनसे एक ठोस, द्रव या गैस में परिवर्तित होता है। वैशेषिक दर्शन पंचमहाभूत स्तर (सांख्य दर्शन की तन्मात्रा)पर पूर्वोल्लिखित अवस्था परिवर्तन को स्वीकार नहीं करता, लेकिन 'भूत' (Bhuta) स्तर पर इसे नैमित्तिक परिवर्तन मानता है।
'भूत' शब्द का एक विशेष अर्थ भी है। पंचीकरण के नियमों के अनुरूप भूत, पंचमहाभूतों के विभिन्न अन्त:संयोगों के उत्पाद हैं। महाभूत वस्तु की दार्शनिक या आदर्श अवस्था है जबकि भूत वस्तु की वास्तविक अवस्था को व्यक्त करता है। भौतिकी में सभी तीनों अवस्थाएँ ठोस, द्रव एवं गेस नैमित्तिक हैं। ये अवस्थाएँ सामान्यत: परिवर्तनीय नहीं है, परन्तु इनको तापमान और दाब की अवरोधक परिस्थितियों की अनुपस्थिति मे बदला जा सकता है।
भौतिकी में वस्तु की तीनों अवस्थाओं को इस प्रकार परिभाषित किया जाता है-पदार्थ की अवस्थाओं का अन्तर उनके अणुओं के मध्य अन्तराण्विक अन्तराल के कारण होता है। ठोस को गर्म करने से उसके आण्विक दोलनों में वृद्धि होती है, जिसके फलस्वरूप स्नेहकारक बल में न्यूनता आ जाती है, फलत: कठोरता, स्थितिस्थापकता इत्यादि में कमी आ जाती है। 1
निश्चित तापमान और दाब पर ठोस वस्तु द्रव अवस्था में परिवर्तित हो जाते हैं। इस अवस्था में स्नेहकारक बल (Cohesive Force) पृष्ठ तनाव (Surface tension) उत्पन्न करता है। 2
पूर्वोक्त कथित ऐसे किसी द्रव से और अधिक ऊष्मा का सम्पर्क उसके अणुओं की गतिज ऊर्जा में वृद्धि करती है जिसके परिणाम स्वरूप अणु पृष्ठ तनाव को पार कर जाते हैं, 3 और सीधे पथ पर गमन हेतु स्वतन्त्र होकर परस्पर टकराते हुए अनियमित पथ का पालन करने लगते हैं। 4
इस स्थिति में गुरुत्व के कारण उनका पतन नगण्य होता है। 5
किसी निश्चित दाब और तापमान पर सम्पूर्ण द्रव वाष्प में परिवर्तित हो सकता है। ऐसी वाष्प (गैसीय अवस्था) दाब में न्यूनता और अधिकता के कारण क्रमश: आयतन में वृद्धि और कमी को प्रदर्शित करती है।
निम्नलिखित उदाहरण से इसे समझा जा सकता है-
जैसे-ऊष्मा के संयोग से 'ठोसबर्फ' के अणुओं की गति में वृद्धि होने के कारण अन्तराण्विक अन्तराल में परिवर्तन आता है। और बर्फ द्रव 'जल' में परिवर्तित हो जाता है। पुन: यह द्रवित जल ऊष्मा के संयोग से एक निश्चित तापमान पर वाष्प में परिवर्तित हो जाता है क्योंकि आणविक गति में वृद्धि के कारण अणु पृष्ठतनाव (Surface tension) की सीमा का उल्लङ्घन कर जाते हैं, अर्थात् जल की सतह से बाहर निकल आते हैं।
उपर्युक्त प्रयोग में यदि एक वायुरोधक (scale) पात्र में कम मात्रा में बर्फ को लिया जाय और तुला में रखकर गर्म किया जाय तो किसी भी अवस्था में पार्थिवमान (Mass) में परिवर्तन परिलक्षित नहीं होता। यह इस तथ्य को स्पष्ट करता है कि पृथ्वी, जल और वायु ये वस्तु मापन योग्य है, क्योंकि इनमें पार्थिवमान (द्रव्यमान) निहित होता है। द्रव्यमान को व्यवहार योग्य बनाने वाली इकाइयाँ माष, ग्राम (Gramme) पौण्ड इत्यादि इकाईयाँ हैं। यद्यपि ये इकाईयाँ भिन्न-भिन्न हैं, जो विभिन्न युगों और भिन्न भौगोलिक परिवेश में बन्धित है, फिर भी प्राचीन युग और नवीन युग में पार्थिवमान की गणना में प्रयोग की जाने वाली विधि में कोई अर्थपूर्ण अन्तर नहीं है।
अपनी भौतिक अवस्था के कारण ठोस, द्रव और गैस एक निश्चित स्थान घेरते हैं, उस व्याप्त स्थान को ही 'आयतन' (Volume) कहते हैं। इन आयतनों की परिसीमा में ही वस्तु अपने 'गुरुत्व' को प्रदर्शित करता है। और इसी आयतन में तापमान और दाब से ठोस, द्रव या गैसीय अवस्था को प्राप्त होता है।
विभिन्न भौतिक अवस्थाओं को प्राप्त हुए 'वस्तुओं' में गन्ध और गुरुत्व भार जैसे गुण देखे जा सकते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि ठोस के समान द्रव और गैस में भी पार्थिव परिमाण उपस्थित रहता है। अवस्था परिवर्तन में भी जो नष्ट नहीं होता वस्तु की उस मात्रा को 'पार्थिवमान' (Mass) कहते हैं।
पार्थिवमान की इकाईयाँ और उद्भूत इकाईयाँ(Units and Derived Units of Mass)
ऋग्वेद, पाणिनी अष्टाध्यायी, महाभारत, याज्ञवल्क्य स्मृति और चरक संहिता इत्यादि ग्रन्थों में परिभाषित भार और उनकी संज्ञाओं का वर्णन निम्न प्रकार से कर सकते हैं जो प्रारम्भिक वैदिक काल (१२०० से ८००० ई०पू०) में प्रयुक्त होते थे-
माष (masa) = १ शाण (sana) 6
८ शाण (sana) = १ शतमान (satamana)
१ शतमान (satamana) = ३२० कृष्णल (रत्ति या गुंजा) (krsnala) 7
४ शाण (sana) = १ सुवर्ण (suvarna) 8
४ सुवर्ण (suvarna) =१ निष्क (niska) 9
इससे हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि -
१ माष (masa) = १० कृष्णल (Krsnal) = ४ अण्डक 10
१६ माष (masa) = १ सुवर्ण (suvarna) या हिरण्यपल (Hiranya pala)
पाणिनी अष्टाध्यायी 11 के अनुसार 'शाण'(sana) उस काल की एक प्रकार की मुद्रा (सिक्का (Coin) थी, जिसे 'पण' (pana) कहते थे। भारतीय परम्परा में 'पल' (एक भार मानक) को पण (सिक्का) के चार गुने के बराबर परिभाषित करते हुए देखा गया है। इस काल में स्वर्ण (ळवसकद्ध व्यवहार में आदान-प्रदान का माध्यम था। ऋग्वेद में इस कार्य में प्रयुक्त अन्य किसी धातु का उल्लेख नहीं प्राप्त होता है।
तैत्तिरीय संहिता, शतपथब्राह्मण निषद् में यज्ञ के सम्बन्ध से प्रयुक्त एक अन्य इकाई 'शतमान' का वर्णन किया गया है। यथा-तीन शतमान सभी सहभागी ब्राह्मणों को दिये गये। 12 शतमान का अभिप्राय सोने के सिक्के से है।
कात्यायन आचार्य 13 ने भी इस सिक्के के भार को अधोलिखित प्रकार से विवेचित किया है -
१ शतमान = १०० कृष्णल
१ पाद = २५ कृष्णल 14
कुछ कालान्तर बाद (५०० ठण्ब्ण्) में, जैसा कि 'काशिका' 15 में है एक नया मानक 'विंशतिक' (Vimsatika) अपनाया गया था-
१ विंशतिक कर्ष = सुवर्ण माष = १०० कृष्णल
१ विंशतिकधरण = २० रौप्यमाष = ४० कृष्णल
(४०० B.C.) में आस-पास इस मानक के अनुसार एक नया मानक आरम्भ किया गया- 16
१ कर्ष = १६ सुवर्ण माष = ८० कृष्णल
कौटिल्य के अर्थशास्त्र में ४०० B.C. और उसके पश्चात् प्रयोग में व्यवहृत प्राय: समस्त भार-मानकों का गंभीर विवेचन प्राप्त होता है। कौटिल्य के अनुसार -
१ पल (आयमानी) = १० धरण
१ पल (व्यावहारिकी) = ९.५ धरण
१ पल (भाजनी) = ९.० धरण
१ पल (अन्त:पुरभाजनी) = ८.५ धरण
ऐसा प्रतीत होता है कि विभिन्न भार-मानकों और उनकी संज्ञाओं के सम्बन्ध में प्राप्त उल्लेख विभिन्न स्थानों से संग्रहीत किये गये हैं, विभिन्न कालों में प्रयुक्त होने वाले ये मानक स्वतन्त्र रूप से व्यवहार निष्पादन करते थे। परन्तु हमें प्राचीन भारत में प्रयुक्त किये जाने वाले विभिन्न प्रकार के भारमानकों के मध्य एक सम्बन्ध प्रतीत होता है। इनके द्वारा कोई भी अनुसंधित्सु सहजतया भारती, ग्रीक, पार्शियन, रोमन और ब्रिटिश भारमानकों के मध्य उपजीव्य-उपजीवनक भाव सम्बन्घ प्राप्त कर सकता है जिससे यह स्पष्ट होगा कि कैसे ये मानक वैज्ञानिक रूप से निम्नलिखित वैदिक भार मानकों पर आधारित हैं-
१ माष = १० कृष्णल = ४ अण्डक
१६ माष = १ सुवर्ण अथवा वैदिक पल
वैज्ञानिक गवेषणा (Scientific Investigation)
सर्वप्रथम कौटिल्य के वैज्ञानिक मत का उल्लेख करना प्रासङ्गिक प्रतीत हो रहा है, जिसके आधार पर अतिप्राचीन समय से मुद्रा का व्यवहार प्रचलित रहा है। कौटिल्य के अनुसार- 17
।। सर्वधातुनां गौरववृद्धौ सत्त्ववृद्धि:।।

अर्थात् घनत्व में वृद्धि से समस्त धातुओं के समान आयतन के लिये वस्तु या मूल्य (सत्त्व) में वृद्धि होती है। प्राचीन काल में धातुओं का प्रयोग मुद्रा के रूप में आदान-प्रदान हेतु होता था। यह निश्चित रूप से सम्भावनीय है कि सिक्के या विभिन्न धातु खण्डों की आकृति और आकार को समान बनाए रखने हेतु विभिन्न धातुओं के नामों पर आधारित विभिन्न भार-मानकों का प्रयोग किया जाता रहा होगा। उनके आकार में साम्य बनाए रखने हेतु हमको भारों की विभिन्न इकाईयों को विभिन्न धातुओं के सन्दर्भ में इस आधार पर परिभाषित करना होगा कि वे परस्पर अपने घनत्व के व्युत्क्रमानुपाती हों। सुवर्ण (स्वर्ण मानक) या वैदिक पल को वैदिक काल के अन्य भारमानकों का आधार मानकर अन्य धातुओं से सम्बन्धित 'पल' आदि भार मानकों की गणना की जा सकती है। उदाहरणार्थ- सोना, चाँदी, तांबा एवं लोहे का घनत्व क्रमश: १९.३, १०.५, ८.९६ एवं ७.८६ है। अत: हम कह सकते हैं कि -
चाँदी पल = (१९.३/१०.५) x सुवर्ण पल = १.८४ सुवर्ण पल
ताम्र पल = (१९.३/८.९६) x सुवर्ण पल = १.८६ सुवर्ण पल
लौह पल = (१९.३/७.८५) x सुवर्ण पल = २.६ सुवर्ण पल
ऐसा प्रतीत होता है कि प्राचीन ऋषियों ने घनत्व अनुपातों की गणना भारतीय मानक हेतु सन्निकट पूर्ण अंक तक ही की थी। यदि यह मत समीचीन मान लिया जाय तो -
चाँदी पल = ताम्र पल = २ x सुवर्ण पल = २ x १६ माष = ३२ माष
और, लौह पल = ३ x सुवर्ण पल = ३ x १६ माष = ४८ माष
अत: १ धरण = ३.२ माष = ३२ कृष्णल
१ कर्ष = ८ माष = ८० कृष्णल
उपर्युक्त ये इकाईयाँ कौटिल्य द्वारा वर्णित आयमानी भारमानक इकाई के समान ही हैं। चरक द्वारा वर्णित भार मानक 'पल' (मुष्टि) जो ४८ माष के समतुल्य है, आयमानी दृष्टिकोण वाला ''लौहपल'' है।
यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि कौटिल्य ने विभिन्न तुलाओं (Balance) का वर्णन किया है।
ये तीन समूहों में हैं, और इनमें प्रयुक्त लौह छड़ों का आकार और उनका भार 'लौह' (लौह पल) में दिया गया है। इस हेतु एक सर्वसाधारण व्यक्ति की कल्पना से व्यास को क्रमश: १, २, और २.२ अंगुल मानकर कोई भी लोहे के घनत्व की माप माष प्रतिघन अंगुल में कर सकता है। इसे अधोलिखित सारणी-१ से स्पष्ट समझा जा सकता है।
Set 1
तुला लम्बाई अंगुल में भार 'पल' में व्यास अंगुलि में घनत्व
दोनों सिरों पर पलड़े वाले प्रथम दस तुले ७.६४


Set 2 - समवृत्तता
तुला लम्बाई अंगुल में भार 'पल' में व्यास अंगुलि में घनत्व
आयमानी ७२ ३५ ७.४२
व्यावहारिकी ६६ ३३ - ७.६४
भाजनी ६० ३१ - ७.८९
अन्त:पुरभाजनी ५४ २९ - ८.२०


Set 3 - परिमाणी
तुला लम्बाई अंगुल में भार 'पल' में व्यास अंगुलि में घनत्व
आयमानी ९६ ७० २.५ ७.१३
व्यावहारिकी ९० ६८ - ७.३९
भाजनी ८४ ६६ - ७.६८
अन्त:पुरभाजनी ७८ ६४ - ८.०२


उपर्युक्त अट्ठारह तुलाओं हेतु लोहे का माध 'धनत्व' (mean density) = ७.७ माष/घन अंगुलि है।
अत: हमें लोहे के घनत्व का आंकिक मान माष/घन अंगुलि में तथा ग्राम/घन से.मी. में लगभग समान ही प्राप्त होता है। इस आधार पर हम कह सकते हैं कि एक माष, एक घन अंगुलि पानी के भार के बराबर होता है-
अत: १ माष = १ घन अंगुलि जल
= (१.०४१६७)ग्राम
= १.१३ ग्राम
= १७.५ ग्रेन
एक अंगुल = १.०४१६७ से.मी. होता है, इस विषय में गणना पूर्व के अध्याय में की है।
सैंधव भार मानक - 18 १ पद्धति - सैंधव सभ्यता के उत्खनन में प्राप्त प्रथम भार श्रृंखला (First series of weight) जिसको A,B,C,D,E,F,G,H,I,J,K,L,M एवं N से निर्दिष्ट किया गया है, सरलता से यह प्रदर्शित करती है कि उपर्युक्त भार चरकसंहिता में वर्णित 'पल' अथवा 'मुष्टि' (आयमानी लौहपल=४८ माष) से समरूपता रखते हैं। जिसकी पहचान भार 'H' के रूप में सारणी-२ में की गई है।
सैंधव भारमानक-२ पद्धति- एक अन्य प्राप्त द्वितीय भार श्रृंखला में P, Q, R, S, T, एवं U संज्ञाएँ ही प्रयुक्त हैं, अन्तर मात्र इतना है कि इसमें 'पल' या 'मुष्टि' को, 'भाजनी लौह पल' के रूप में लिया गया है, जहाँ लोहे और सोने के घनत्व अनुपात को २.५ माना गया है। यह अनुपात 'भाजन' या भाग द्वारा प्राप्त किया जाता है। भाजनी लौह पल सर्वगुण, का
२.५ गुना होगा, जो = २.५ x १६ = माष के बराबर होगा।
हैवी एसीरियन एवं बेबीलोनियन भारमानक-
यह तथ्य सर्वविदित है ये दोनों पद्धतियाँ' षाष्ठिक पद्धति (sexagesimal system) पर आधारित है, जिसमें ६० दीर्घ शेकेल १ दीर्घ मीना के तुल्य है और ६० दीर्घ मीना १ टैलेण्ट के बराबर है। प्रकृत प्रसङ्ग में यह ध्यान देने योग्य है कि इस पद्धति की सबसे छोटी इकाई 'अंडक' के बराबर है, अर्थात् १ दीर्घ शकेल ६० अंडक के बराबर है। इससे यह स्पष्ट होता है कि 'अंडक', जो कि माष का एक चौथाई है, बेबीलोनिअन पद्धति का मूल है।
शतमान पद्धति- ८०० से ५०० ई०पू० तक उत्तर भारत में एक 'शतमान' नामक पद्धति प्रचलित थी। इसके अनुसार १ शतमान १०० कृष्णल (रत्ति) या १० माष के बराबर था। इस पद्धति में एक इकाई शतमान के चतुर्थांश के बराबर होती है, जिसका नाम पाद था।
दक्षिण भारतीय इसी काल में दक्षिण भारत में एक पद्धति थी, जिसमें २० मंजदी (Manjadi) १ कलन्जू (Kalanju) के समतुल्य था और १ कलन्जु १ शाण या ५ माष के बराबर होता था। जिसे हम विंशतिक पल या भाजनी लौह पल का दसवां अंश समझ सकते हैं। यह सैंधव संस्कृति की द्वितीय भार पद्धति से सम्बद्ध था।
उपर्युक्त पद्धति धरण पद्धति (५०० से ४०० ई०पू०) के समानान्तर में एक अन्य पद्धति भी प्रचलन में थी। इस पद्धति में २० साम्ब्य (Sambaya) एक धरण (dharana) के बराबर था, जबकि १० धरण १ आयमानी पल के बराबर था। उपर्युक्त सभी पद्धतियाँ अधोलिखित सारिणी-२ में दर्शायी गयी है।
सारणी
प्राचीन वैश्विक विभिन्न भारमानक पद्धतियाँ
The Various Ancient Global Weight Systems
Period:- 1200 to 800 B.C.
(i) Vaidika System
Based on Documental and Literary References Based on Archaecological Reference
Weights and their Denominations Designation Weight Symbol / Name Weight Remarks
10 Krsnala 1 Masa 1.1300 gm - - Yet thre is no Archaeological evidence
4 Masa 1 Sana 4.5200 gm
4 Sana 1 Suvarna or Hiranya Pala 18.0800 gm
4 Suvarna 1 Niska 72.3200 gm


(ii) Indus System I
Based on Documental and Literary References Based on Archaecological Reference
Weights and their Denominations Designation Weight Symbol / Name Weight Remarks
12 Andaka 1 A.L. Sana (Ayamani Louha Sana) 3.3900 gm - - In accordance with caraka Samhita
3 Andaka - 0.8475 gm A 0.87 gm
6 Andaka Padasana 1.6950 gm B 1.76 gm
8 Andaka Sanaradha 2.2600 gm C 2.28 gm
3 Masaka 2 Masaka 3.3900 gm D 3.41 gm
2 A.L.Sana 1 A.L.Sana 6.7800 gm E 6.82 gm
4 A.L.Sana 1 Dranksana or Kola or Badar 13.5600 gm F 13.81
8 A.L.Sana 1 Al. Karsa 27.1200 gm G 27.38 gm
16 A.L.Sana 1 Palardha or Mustyardha 54.2400 gm H 54.23 gm
40 A.L Sana 1 Musti 135.6000 gm J 135.95 gm
50 A.L.Sana - 169.5000 gm K 174.50 gm
80 A.L.Sana 5 Musti 271.2000 gm L 272.90 gm
160 A.L.Sana 10 Musti 542.4000 gm M 546.70 gm
400 A.L.Sana 25 Musti 1356.00 gm N 1375.00 gm
4 Andaka 1 Masa - - 1.1825 gm -
2.5 Masa 1 B.L.Sana (Bhajani Lauha Sana) 2.96225 gm


(iii) Indus System II
Based on Documental and Literary References Based on Archaecological Reference
Weights and their Denominations Designation Weight Symbol / Name Weight Remarks
1/3 B.L.Sana - .9850 gm P 0.98 gm -
2/3 B.L. Sana - 1.9700 gm Q 2.07 gm
1 B.L. Sana - 2.9560 gm R 3.03 gm
4/3 B.L.Sana - 3.9420 gm S 3.92 gm
8 B.L.Sana - 23.6500 gm T 24.50 gm
16 B.L.Sana 1 Bhajani Musti 47.3000 gm U 47.30 gm


(iv) Heavy Assyrian System
Based on Documental and Literary References Based on Archaecological Reference
Weights and their Denominations Designation Weight Symbol / Name Weight Remarks
1 Masa - 1.1300 gm - 0.279 gm -
1 Andaka - 0.2825 gm 1 Andaka 0.279 gm
60 Andaka 1 Large Shekel 16.8000 gm 1 Shekel 16.75 gm
60 Large Shekel 1 Large Mina 1008.000 gm 1 Mina 1005.00 gm
60 Large Mina 1 Talent 60480.00 gm 1 Talent 60303.00 gm
1 Talent - 60480.00 gm 1 Talent 60303.00 gm
15 MIna - 15120.00 gm 15 Mina 14933.00 gm
5 Mina - 5020.00 gm 5 Mina 5043.00 gm
3 Mina - 3024.00 gm 3 Mina 2865.00 gm
2 Mina - 2016.00 gm 2 Mina 1962.00 gm
1 Mina - 1008.00 gm 1 Mina 990.00 gm
2/3 Mina - 672.00 gm 2/3 Mina 666.00 gm
1/4 Mina - 252.00 gm 1/4Mina 237.00 gm
1/5 Mina - 201.00 gm 1/5 Mina 198.00 gm
1/6 Mina - 168.00 gm 1/6 Mina 178.00 gm
1/8 Mina - 126.00 gm 1/6 Mina 128.00 gm
3 Shekel - 50.40 gm 3 Shekel 52.40 gm
2 Shekel - 33.60 gm 2 Shekel 36.00 gm
1 Shekel 30 Andaka 8.40 gm - - -
1 Talent - 30240.00 gm 1 Talent 30240.00 gm
30 Mina - 15120.00 gm 30 Mina 15120.00 gm


Period:- 800 - 500 B.C.
(v) Light babylonian System
Based on Documental and Literary References Based on Archaecological Reference
Weights and their Denominations Designation Weight Symbol / Name Weight Remarks
5 Mina - 2520.00 gm 5 Mina 2520.00 gm Mean Value of Shekel exactly tallies with that found by Marshall
3 Mina 1515.00 gm 3 Minda 1512.00 gm
2 Mina 1008.00 gm 2 Mina 1003.00 gm
1 Mina 504.00 gm 1 Mina 504.00 gm
30 Shekel 252.00 gm 30 Shekel 252.00 gm
20 Shekel 168.00 gm 20 Shekel 168.00 gm
10 Shekel 84.00 gm 10 Shekel 84.00 gm
5 Shekel 42.00 gm 5 Shekel 42.00 gm
2 Shekel 16.80 gm 2 Shekel 16.00 gm
1 Shekel 8.40 gm 1 Shekel 8.40 gm
1/2 Shekel 4.20 gm 1/2 Shekel 4.20 gm
1/4 Shekel 2.10 gm 1/4 Shekel 2.10 gm
1/8 Shekel 1.05 gm 1/8 Shekel 1.05 gm


(vi) Katyayani System or Vimsatika System
Based on Documental and Literary References Based on Archaecological Reference
Weights and their Denominations Designation Weight Symbol / Name Weight Remarks
10 Krsnala 1 Masa 18.00 gm Panitala or Satamana - -
25 Krsnala 1 Pada 45.60 gm - 180.00 gt Bimbsara
4 Pada 1 Panitala or Satamana 182.50 gm - 177.30 gt Ajatasatru


(vii) South Indian System
Based on Documental and Literary References Based on Archaecological Reference
Weights and their Denominations Designation Weight Symbol / Name Weight Remarks
4 Panitala 1 Bhajani Musti 73.00 gt Kalanju 73.00 gt Nanda Dynasty
20 Manjadi 1 Vaidika Sana or Kalanju - - -
10 Sana (Kalanju) 1 Bhajani Musti or 40 Masa 730.00 gt - -


(viii) Dharma System
Based on Documental and Literary References Based on Archaecological Reference
Weights and their Denominations Designation Weight Symbol / Name Weight Remarks
1 Masa - 170.50 gt Dharana 56.00 gt Maurya Dynasty
20 Sambya 1 Dharana 56.00 gt - -
10 Dharana 1 Ayamani Pala 560.00 gt - -


(ix) Ayamani System
Based on Documental and Literary References Based on Archaecological Reference
Weights and their Denominations Designation Weight Symbol / Name Weight Remarks
1 Masa 1 Karsa 17.50 gt Karsapana 144.00 gt -
4 Masa 1Ayamani Pala of 32 Masa 140.00 gt - -
4 Masa - - - -


Period:- 400 B.C.Onward
(x) Vyavaharika System
Based on Documental and Literary References Based on Archaecological Reference
Weights and their Denominations Designation Weight Symbol / Name Weight Remarks
1 Masa a 17.50 gt - - -
8 Dranksana 1Vyavaharika Pala of 30.4 Masa - - -
1 Dranksana 3.8 Masa 66.50 gt Drachm 62.00 gt


(xi) Bhajani System or Persian System
Based on Documental and Literary References Based on Archaecological Reference
Weights and their Denominations Designation Weight Symbol / Name Weight Remarks
1 Masa - 18.00 gt Karsapana 144.00 gt -
1 Karna of Bhanani Pala of 28.8 Masa 7.2 Masa 129.00 gt Shekel 130.00 gt
1/6 Bhajani 4.8 Masa 86.40 gt Siglos 84.00 gt


(xii) Antahpura Bhajani System or Roman System
Based on Documental and Literary References Based on Archaecological Reference
Weights and their Denominations Designation Weight Symbol / Name Weight Remarks
1 Masa - 18.00 gt - - -
1 Karsa of Antahpura Bhajani Pala -


(xiii) Avoirdupois or British System
Based on Documental and Literary References Based on Archaecological Reference
Weights and their Denominations Designation Weight Symbol / Name Weight Remarks
1 Masa 1 Vaimsika Pala 17.50 gt - - -
40 Masa 1 British Pound of 400 Masa 700.00 gt - -
10 Vaimsatika Pala - 7000.00 gt British Pound 7000.00 gt


(xiv) Apothecaries or Troy
Based on Documental and Literary References Based on Archaecological Reference
Weights and their Denominations Designation Weight Symbol / Name Weight Remarks
1 Masa - 18.00 gt - - -
32 Masa 1 Ayamani Pala 576.00 gt - -
10 Ayamani Pala 1 Troy Pound 5670.00 gt Troy Pound 5670.00 gt


Note: 1- Abbreviation: gm = Gramme, gt = Troy grain
Note: 2- Symbols A to U are in accordance with Marshall (1931)
भारतीय, ग्रीक, पर्शियन एवं रोमन सिक्के(Indian, Greek, Persian and Roman weight Standard)
प्राचीन भारत में ४०० ई०पू० के लगभग 'आयमानी पल' भार की एक सुस्थापित इकाई थी जो १० धरण के समतुल्य थी, जैसा हम घनत्व अनुपात परिकल्पना से पूर्व ही ज्ञात कर चुके हैं। अन्य मानकों जैसे-व्यावहारिकी, भाजनी एवं अन्त:पुर भाजनी के भारों की व्याख्या क्रमश: ९.५, ९ और ८.५ के मान प्राप्त होते हैं।
सुवर्ण और चाँदी के घनत्व का वास्तविक अनुपात १.८ है और 'भाजनी' पद्धति उपर्युक्त अनुपात पर ही आधारित है। इससे यह प्रतीत होता है कि 'भाजनी' यह नाम भंजन या भाग (Divison) से उद्भूत हुआ है। इसके आधार पर यह भी कह सकते हैं कि मुद्राशास्त्रियों द्वारा स्थापित समकालीन ग्रीक, पर्शियन, रोमन आदि भार पद्धतियाँ क्रमश: व्यावहारिकी, भाजनी और अन्त:पुर भाजनी भार पद्धतियाँ हैं जिन्हें सारणी-३ में स्पष्ट रूप से दिखाया गया है।
सारणी-३
पद्धति घनत्व अनुपात पल घरण स्वर्ण सिक्का मानक चाँदी सिक्का मानक
पल नाम माष ग्रेन पल नाम माष ग्रेन
आयमानी (भारतीय) ३२ १० पल/४ कर्ष (ताम्र) १४० (१४४) पल/१० धरण ३.२ ५६ (५६)
व्यावहारिकी (ग्रीक) १.९ ३०.४ ९.५ पल/८ द्रम ३.८ ६६.५ (६२) - - - -
भाजनी (पर्शियन) १.८ २८.८ पल/४ - ७.२ १२६ (१३०) पल/६ सिग्लोस ४.८ ८४ (८६.४)
अन्त:पुर भाजनी (रोमन) १.७ २७.२ ८.५ पल/४ दिनार ६.८ ११९ (१२०) - - - -

उपर्युक्त सारणी में छोटे कोष्टक में निदर्शित संख्यात्मक मान, सिक्कों के प्रेक्षित मानक मान हैं जिन्हें मुद्राशास्त्र में निर्धारित किया गया है।

जैसा कि हम पूर्व में कह चुके हैं कि ४०० ई०पू० विंशतिक 'कर्ष' नामक एक भारमानक था, जिसका मान १० माष के समतुल्य था। इससे विंशतिक पल का मान ४० माष आता है जबकि आयमानी पल ३२ माष का था। पाश्चात्य देशों में C.G.S. और M.K.S. पद्धति के आगमन से पूर्व अनोर्दुपो पौण्ड (Avairdupois pound) या ब्रिटिश पौण्ड (British Pound) या ट्राय (Troy) भार मानकों के रूप में प्रयोग में थे। प्रकृत प्रसङ्ग में यह कहा उचित ही होगा कि उपर्युक्त विभिन्न इकाईयाँ क्रमश: विंशतिक और आयमानी भार पद्धति में प्रयुक्त १० पल के बराबर है।
१० विंशतिक पल = ४०० माष = ४० X १७.५ ग्रेन = १ ब्रिटिश पौण्ड
१० आयमानी पल = ३२० माष = ३२० X १८ ग्रेन = ५७६० ग्रेन = १ ट्रॉय पौण्ड
(यहाँ ट्रॉय पौण्ड के लिये १ माष को १७.५ ग्रेन के स्थान पर १८ ग्रेन लिया गया है)।
पूर्वोल्लिखित सारणी में घनत्व अनुपात के अन्तर (१.८ ± ०.१) को संसार के विभिन्न भागों से प्राप्त धातु की शुद्धता के खाते में दिखाया जा सकता है। भारतीयों ने इसको २ के अंक से पूर्ण कर दिया, यद्यपि वे सही अनुपात जानते थे क्योंकि उन्होंने इस पद्धति का नाम ही 'भासनी' रखा था।
इन गणनाओं के साथ-साथ पुरातात्त्विक तथ्य भी भार की आर्यन इकाई 'माष' को न केवल 'ग्राम' जैसी वैज्ञानिक आधारयुक्त इकाई के रूप में प्रमाणित करते हैं प्रत्युत इस बात के भी संकेत देते हैं कि अन्य प्रचलित भार पद्धतियों में इसको न्यूनाधिक रूपान्तरण के साथ ग्रहण किया गया होगा, यद्यपि इनमें भार की भारतीय इकाई 'माष' का कहीं भी उल्लेख नहीं है।
दशमलव पद्धति- दशमलव पद्धति में भार की इकाई 'ग्राम' है। ४० सेन्टीग्रड तापमान पर १ घन से.मी. पानी का भार 'एक ग्राम' कहलाता है। इसके गुण और खण्ड निम्न हैं-
१० मिलीग्राम= १ सेन्टीग्राम
१० सेन्टीग्राम= १ डेसीग्राम
१० डेसीग्राम= १ ग्राम
१० ग्राम = १ डेसीग्राम
० डेकागाम= १ हेक्टोग्राम
१० हेक्टोग्राम= १ किलोग्राम ?
इस सन्दर्भ में हम पूर्व से ही जानते हैं कि -
१ माष = १० कृष्णल = १.१३०२८ ग्राम
इस आधार पर प्राचीन भारत में प्रयुक्त भार मानकों को भार की प्रचलित आधुनिक इकाई ग्राम में व्यक्त किया जा सकता है। इस परिवर्तन विधि का फल होना, उन भारमानकों का अधिक सुस्पष्ट सुभिन्न ज्ञान प्राप्त होगा।
भार का वर्तमान मानक प्लेटिनम (Platinum) धातु निर्मित है। प्लेटिनम धातु सुवर्ण के समान श्रेष्ठधातु (Noble Metal) है और इस पर मौसम का प्रभाव नहीं होता।
इस सम्बन्ध में हम कौटिल्य का उल्लेख कर सकते हैं। 19
तुला (Balance)
तुला एक उपकरण है जिसका उपयोग दो भारों की तुलना करने में होता है। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में विभिन्न आकार की तुलाओं की संरचना उपवर्णित है। इस विवरण के उल्लेख के पूर्व तुला के सिद्धान्त को समझना आवश्यक होगा, जिस पर तुला प्रक्रिया आधारित होती है।
तुला का सिद्धान्त (The Principle of Balance)
लकड़ी की एक आयाम पट्टिका (Wooden Scale) के मध्य बिन्दु अर्थात् केन्द्र में छिद्र किया जाता है, तत्पश्चात् सुआ स्थापित करके उसको आलम्ब पर टिका दिया जाता है। चित्र में निर्दिष्ट प्रकार से स्थापित करके पट्टिका का पृथ्वीतल से समकरण देखा जाता है। यदि पट्टिका क्षैतिज नहीं है, तो उसके अध: झुके हुए भाग को उस सीमा तक घिसा जाता है, जब तक पट्टिका क्षैतिज नहीं हो जाती। तदनन्तर पट्टिका को अंशांकित किया जाता है, अर्थात् इस पर किसी बराबर दूरी या लम्बाई को किसी इकाई द्वारा चिह्नित कर दिया जाता है। केन्द्र से भारों की दूरियों को परिवर्तित करते हुए पट्टिका को सर्वदा क्षैतिज अवस्था में कर लिया जाता है।
इन अवस्थाओं को अधोलिखित प्रकार से सारणीबद्ध किया जा सकता है-
प्रेक्षण क्रमांक पूर्व-भाग उत्तर-भाग
प्रेक्षण जब स्केलxदूरी क्षैतिज अवस्था में ह केन्द्र से भार की दूरी भार भार x दूरी केन्द्र से भार की दूरी भार भार


उपर्युक्त प्रेक्षणों के आधार पर यह प्रतीत होता है कि पूर्वभाग के भार और उसकी केन्द्र से दूरी का गुणनफल, उत्तर भाग के भार और उसकी केन्द्र से दूरी के गुणनफल के बराबर होता है।
भौतिकतुला (Physical Balance) में केन्द्र से दोनों भारों की दूरी बराबर होती है। दोनों तरफ पलड़े स्थापित किये जाते हैं जिन पर वजन तौला जाता है। चित्र ९

चित्र ९

कौटिल्य की तुला (The Balance of Kautilya)
कौटिल्य ने लोहे की दस तुलाधरणों का वर्णन किया है जो ६, १४, २२, ३०, ३८, ४६, ५४, ६२, ७० और ७८ अंगुलि लम्बाई की है और इनके भार में क्रमश: एक 'पल' की वृद्धि होती है।
इन तुलाओं में पलड़ों (Pans) का उपयोग उपकरण के दोनों ओर हो सकता है। 20
हमें पूर्व से विदित है कि लौह का घनत्व ७.७० माष/घन अंगुलि होता है, अत: ८ अंगुलि लम्बाई और इकाई व्यासवाली छड़ का भार ४८ माष या १ लौह पल के निकट होगा, जो कि सूत्रार्थ के अनुरूप है।
प्रकृत प्रसङ्ग में कौटिल्य की 'समवृत्त' तुला का वर्णन किया जा रहा है। 21
इसके अनुसार प्रथमत: हमें एक समान अनुप्रस्थ काट वाली ७२ अंगुल लम्बी और ३५ पल भार वाली एक छड़ (Bar) का निर्माण करना होता है तदनन्तर इस छड़ को ५ पल के भार की सहायता से क्षैतिज अवस्था में स्थिर करते हैं।
छड़ को तुला के धरन के रूप में उपयोग करने हेतु छड़ को केन्द्र से लटकाया जाना चाहिये। इसके लिये दण्ड के मध्य भाग में छिद्र करना चाहिये। यदि दण्ड (छड़) क्षैतिज अवस्था में नहीं आता है तो इसका अर्थ यह होगा कि दण्ड एक समान अनुप्रस्थ काटवाला नहीं है अथवा छिद्र केन्द्र में नहीं बना है। ऐसी अवस्था में दण्ड पर ५ पल परिमित भार लटकाया जाता है जिससे छड़ क्षैतिज अवस्था में आ जाती है।
तत्पश्चात् दण्ड पर १ कर्ष से १ पल, १पल से १० पल, १२ पल, १५ पल से १०० पल हेतु १० पल के अन्तराल पर चिह्नित करना चाहिये, तदनन्तर चिह्नित स्थलों पर छोटे छिद्र करके चर्म रज्जुओं को बांधना चाहिये।
उपर्युक्त विवरण यद्यपि अत्यन्त संक्षिप्त है तथापि चिह्नों की समस्त स्थितयाँ गणितीय प्रतीत होती हैं तुला के सिद्धान्त को प्रयुक्त करके इसका गणितीय विश्लेषण करना आवश्यक है।
कौटिल्य तुला में उस बिन्दु को शून्य मान लिया जाता है जहाँ ५ पल का भार लटकाने पर छड़ क्षैतिज अवस्था में रहती है, इसके दोनों तरफ एक अंगुल मान की दूरी पर चिह्न लगाये जा सकते हैं। व्यवहार में जिस पिण्ड का भार ज्ञात करना अपेक्षित होता है उसको बांयी तरफ और प्रतिमान (भार) को धरन के दाहिने लटकाया जाता है।सूत्र से यह भी दृष्टिगोचर होता है कि धरन के विभिन्न चिह्नों पर ५ पल भार को लटकाने से तुला को क्षैतिज अवस्था में लाया जा सकता है।
उदाहरण हेतु-माना एक प्रायोगिक भार को बांयी तरफ दूसरे चिह्न पर लटकाने पर और ५ पलभार को दाहिने तरफ १०वें चिह्न पर लटकाने के उपरान्त धरण क्षैतिज अवस्था में आ जाता है।
ऐसी अवस्था में प्रायोगिक भार को गणितीय रूप से निम्न प्रकार से निर्धारित किया जाता है-
बांया पक्ष दांया पक्ष
W x २ = ५ x १०
or W = २५
पल उपर्युक्त गणना दण्ड की निर्धारित लम्बाई हेतु की गई है, और उसे निम्न प्रकार से सूचीबद्ध किया गया है-
सारणी - ४


सारणी से यह स्पष्ट है कि यदि ५ पल के भार को क्रमश: चिह्नों १०, १२, १५, २० इत्यादि पर लटकाया जाता है, तो १ कर्ष, २ कर्ष, ३ कर्ष इत्यादि या १०, १२, १५, २० पल इत्यादि भारों को तौलना संभव नहीं है।
इस समस्या के समाधान हेतु यदि सूत्र के अक्षर 'त' शब्द द्वादश के पूर्व यदि स्थापित करें तो इसका नवीन रूप 'तद्द्वादश' हो जायगा। जिसका अर्थ होगा-'तत्-वा-दश'। यह स्थिति गणित के साथ साम्य स्थिति को प्राप्त कर लेती है।
उपर्युक्त परिवर्तन को स्वीकार कर प्रयोग करने पर अनेक शुद्ध संकेत प्राप्त होते हैं। यदि प्रायोगिक पिण्ड को बायीं ओर २०वें चिह्न पर लटकाया जाय तो दाहिने ओर का वह चिह्न जिस पर संतुलन प्राप्त किया जाता है-भार का मान कर्ष में प्रदान करता है। जब पिण्ड को बांयी तरफ १०वें चिह्न पर स्थिर कर दिया जाय तो जिस चिह्न पर संतुलन प्राप्त होता है, वह भार को अर्धपल इकाई में अभिव्यक्त करता है। इसी प्रकार जब पिण्ड बांयी ओर एक अंगुल चिह्न पर स्थिर किया जाता है तो, दांयी तरफ का चिह्न संतुलन की अवस्था में अपने अंक के पाँच गुने भार का प्रतिनिधित्व करेगा।
चित्र (१०) में समवृत्त तुला के प्रारूप को दर्शाया गया है।

चित्र (१०)

टना (भारत) संग्रहालय में 'राहुल सांकृत्यायन' के संकलन में उपर्युक्त प्रकारक तुला चित्र सं० ११ में प्रदर्शित की गई है।
प्राचीन समय में भारों का निर्धारण उन्हीं समान सिद्धान्तों पर किया जाता था, जिनका प्रयोग हम वर्तमान में कर रहे हैं। प्राचीन भारत में भी भार का परिमाण (इकाई) इकाई लम्बाई (Unit of Length) और मानक द्रव्य (Standard Substance) 'जल' से उसी प्रकार सम्बन्धित था जैसा आधुनिक वैज्ञानिक अनुमोदित करते हैं।

कौटिल्य अर्थशास्त्र के अनुकूल
प्राचीन चीन देशीय तुला (विविध-१०)
राहुल सांकृत्यायन कक्ष, पटना संग्रहालय, भारत

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References
1
भट्टाचार्य, कारिकावली, गुण निरूपणम् (१०४), (६०० ई. पू.),
"काठिन्यादि क्षितावेव"
2
१) प्रशस्तपाद, -भाष्य, अब्निरूपण, (२०० ई. पू.),
"स्नेहोऽपां विशेष गुण:। संग्रहमृजादि हेतु:।"
२) महर्षि कणाद्, वैशेषिक सूत्र २-१-२, (६०० ई. पू.),
"रूपरसस्पर्शवत्य आपोद्रवा: स्निग्धा:।"
3
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"तत्रविष्फुर्ज्जथुर्लिंगम्।"
4
महर्षि कणाद्, वैशेषिक सूत़्र ५-२-४ (६०० ई. पू.),
"अग्नेरूद्र्ध्वज्वलनं वायोस्तिर्यक् पवनमणूनां मनश्चाद्यं कर्मादृष्टकारितम्।"
5
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"संस्काराभावे गुरुत्वात् पतनम्।"
"अपां संयोगाभावे गुरुत्वात् पतनम्।"
6
महर्षि व्यास, महाभारत, आरण्यक पर्व, ३-१३६-१५ (५०० ई. पू.)
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याज्ञवल्क्य, -स्मृति, १-३६४, ३६५ (५०० ई. पू.)
8
वासुदेव शरण अग्रवाल,
पाणिनी कालीन भारत, पृ० २५२,
9
मनु, मनुस्मृति, ८-१२७ (१३३०-८०० ई. पू.)
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चरक,चरकसंहिता (४९९ ई.)
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पाणिनी, अष्टाध्यायी, ५-१-३४ (१३३०-८०० ई. पू.)
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14
पाणिनी, अष्टाध्यायी ५-१-३४ (१३३०-८०० ई. पू.)
15
कात्यायन, श्रौतसूत्र ५-१६-३० (१३३०-८०० ई. पू.)
16
कौटिल्य, अर्थशास्त्र, अध्यक्ष प्रचार,
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17
कौटिल्य, अर्थशास्त्र, अध्यक्ष प्रचार,
अध्याय-१२, (३०० ई. पू.), आकरकर्मान्त प्रवर्तनम्
18
Sir John Marshall,Volume-II, Arthur Probasthain,४१,Great Russel Street, London, WCI; (१९३१).Mohan-jo-daro and Indus River Civilization.
19
कौटिल्य, अर्थशास्त्र, अध्यक्ष प्रचार, अध्याय-१९, (३०० ई. पू.)
"प्रतिमानान्ययोमयानि मागधमेकलशैलमयानि यानि वा
नोदकप्रदेहाभ्यां वृद्धिं गच्छेयुरुष्णेन वा हासम्।"
20
कौटिल्य, अर्थशास्त्र, अध्यक्ष प्रचार, अध्याय-१९, (३०० ई. पू.)
"षडंगुलादूर्ध्वमष्टांगुलोत्तरा दशतुलाकारयेत् लौह
पलादूर्ध्वमेक पलोत्तरा:। यत्रमुभयत: शिक्यं वा।"
21
कौटिल्य, अर्थशास्त्र, अध्यक्ष प्रचार, अध्याय-१९, (३०० ई. पू.)
"प०चत्रिंशत्पललोहां द्विसप्तत्यंगुलायामां समवृत्तां कारयेत्।
तस्या: प०च पलिकमण्डलं बध्वा समकरणं कारयेत्। तत:
कर्षोत्तरं पलं पलोत्तरं दशपलं (त) द्वादश, प०चदश
विंशतिरिति, पदानि कारयेत्। अक्षेषु नद्ध्रीपिनद्धं कारयेत्।"
संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंञालय, भारत सरकार